मध्यप्रदेश में ऊर्जा संसाधन Mp gk

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" देश के आजाद होने के बाद राज्य में 10 सितंबर 1948 को विद्युत प्रदाय अधिनियम लागू किया गया। इसके बाद 1 दिसंबर 1950 को विद्युत मंडल का गठन किया गया। 1 अप्रैल 1957 को राज्य की स्थापित विद्युत क्षमता मात्र 81.5 मेगावाट थी। विगत वर्षों में विद्युत उपलब्धता में व्यापक वृद्धि हुई। "
👉 किसी भी देश या राज्य में ऊर्जा उपभोग की मात्रा विकास का सूचक मानी जाती है। राज्य में सर्वप्रथम जल विद्युत का उत्पादन ग्वालियर में 240 KB की स्टीम टरबाइन से वर्ष 1905 में किया गया था।
👉 मध्यप्रदेश में ऊर्जा विकास निगम की स्थापना वर्ष 1982 में की गई।
👉 सिंगरौली को मध्यप्रदेश की ऊर्जा राजधानी भी कहा जाता है।

राज्य में विद्युत उपलब्धता

मध्यप्रदेश में ऊर्जा संसाधन Mp gk
👉 राज्य में विगत वर्षों में विद्युत उपलब्धता में व्यापक वृद्धि हुई है। राज्य में विद्युत उपभोग की मात्रा एवं उत्पादन का स्तर बढ़ रहा है। राज्य में विद्युत का सर्वाधिक उपयोग क्रमशः उद्योगों , कृषि एवं घरेलू उपभोग में होता है।
राज्य में ऊर्जा संसाधनों को दो भागों में बांटा जा सकता है -

( 1 ) परंपरागत ऊर्जा के स्रोत -

परंपरागत ऊर्जा स्रोत ऐसे स्रोत हैं , जिनका भंडार पृथ्वी पर सीमित है। ये ऊर्जा स्रोत भविष्य में समाप्त हो सकते हैं। राज्य में कोयला एवं जल प्रमुख परंपरागत ऊर्जा के स्रोत हैं। परंपरागत ऊर्जा स्रोत से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा को तापीय एवं जल - विद्युत में विभाजित किया जाता है।
तापीय विद्युत गृह - राज्य में लगभग दो-तिहाई विद्युत , ताप विद्युत ग्रहों से उत्पन्न की जाती है। ताप विद्युत गृहों में कोयले का प्रयोग किया जाता है। इससे स्पष्ट है , कि राज्य में कोयला ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है।
राज्य के तापीय विद्युत गृहों का विवरण निम्नलिखित है - 
( 1 ) अमरकंटक ताप विद्युत केंद्र - यह विद्युत गृह शहडोल जिले के चचाई नामक स्थान पर वर्ष 1965 में स्थापित किया गया था। शुरुआत में यहां पर 30 - 30 मेगावाट की दो इकाइयां लगाई गई थी। वर्ष 1977 में इसका विस्तार करके 120 - 120 मेगावाट की दो और इकाइयां लगाई गई। वर्ष 2001 में इसका पुनः विस्तार किया गया।
👉 वर्तमान में इसकी कुल विद्युत उत्पादन क्षमता 500 मेगावाट है।
👉 इससे कोयला , सुहागपुर कोयला क्षेत्र की अमलाई और चचाई खदानों से निकलता है।
👉 पानी की आवश्यकता पूरी करने के लिए चचाई में बांध बनाया गया है
( 2 ) सतपुड़ा तापीय विद्युत केंद्र - यह बैतूल जिले के सारणी नामक स्थान पर बनाया गया है। इसका निर्माण वर्ष 1963 में शुरू किया गया था। इसकी पाँचों इकाइयों की कुल विद्युत क्षमता 312.5 मेगावाट थी। संयंत्र में मध्यप्रदेश और राजस्थान राज्यों की 3:2 के अनुपात में साझेदारी है। इस संयंत्र के लिए अमेरिका से वित्तीय सहायता मिली थी।
( 3 ) संजय गांधी तापीय विद्युत केंद्र - यह ताप विद्युत गृह उमरिया जिले के बिरसिंहपुर नामक स्थान पर स्थापित किया गया है। इसमें लगी चारों इकाइयों की क्षमता 210 - 210 मेगावाट है। एक अन्य 500 मेगावाट की विस्तारित इकाई भी लगाई गई है। इस तरह इसकी कुल क्षमता 1340 मेगावाट हो गई है। इस तापीय संयंत्र के साथ एक जल - विद्युत संयंत्र भी लगाया गया है , जिसकी क्षमता 20 मेगावाट है। यह जल विद्युत संयंत्र जोहिला नदी पर स्थापित किया गया है।
( 4 ) चांदनी ताप विद्युत केंद्र - नेपानगर के कागज कारखाने को विद्युत आपूर्ति हेतु वर्ष 1953 में  इसकी स्थापना खंडवा में की गई। इसकी कुल उत्पादन क्षमता 17 मेगावाट है।
( 5 ) जबलपुर ताप विद्युत केंद्र - जबलपुर में 44 मेगावाट की तीन , 2 मेगावाट की चार तथा 1 मेगावाट की एक इकाई कार्यरत है। इसकी कुल उत्पादन क्षमता 15 मेगावाट है।
👉 इसका संचालन राज्य विद्युत मंडल के द्वारा किया जाता है।

मध्यप्रदेश में ऊर्जा संसाधन Mp gk

( 6 ) विंध्याचल बृहत ताप परियोजना - यह  ताप परियोजना सिंगरौली जिले के बैढ़न नामक स्थान पर लगाई गई है। इसकी कुल क्षमता 3260 मेगावाट है। बैढ़न ( सिंगरौली ) को ऊर्जा राजधानी के नाम से जाना जाता है। यह परियोजना प्रथम एवं द्वितीय चरण में सोवियत संघ ( रूस ) की मदद से शुरू की गई थी। यह परियोजना राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम द्वारा संचालित है। प्रथम चरण में इसमें 250 मेगावाट की 6 इकाइयां तथा द्वितीय चरण में 500 मेगावाट की दो इकाइयां लगाई गई।
( 7 ) बीना ताप विद्युत गृह - यह परियोजना सागर जिले के बीना नामक स्थान पर लगाई गई है। इसकी क्षमता 1000 मेगावाट है।
👉 बीना ताप विद्युत गृह में विंध्यप्रदेश के कोयले का प्रयोग किया जाता है।
( 8 ) पेंच ताप विद्युत गृह - यह छिंदवाड़ा जिले में स्थापित है।

( 2 ) गैर परंपरागत ऊर्जा के स्रोत -

ये वे ऊर्जा स्रोत होते हैं , जिनका नवीनीकरण किया जा सकता है। तथा जिन्हें असीमित समय तक प्राप्त किया जा सकता है। इसके तहत पवन ऊर्जा , सौर ऊर्जा , बायोगैस आदि महत्वपूर्ण स्रोत आते हैं। राज्य में परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के संरक्षण हेतु गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के विकास को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।

राज्य में प्रमुख गैर परंपरागत ऊर्जा के स्रोत  -

( 1 ) पवन ऊर्जा - यद्यपि राज्य में वायु का वेग सामान्य है , परंतु पवन ऊर्जा संयंत्र की स्थापना में मध्य प्रदेश प्रथम स्थान पर है। राज्य में सर्वाधिक पवन चक्की इंदौर में लगाई गई हैं। पवन ऊर्जा का प्रयोग मुख्यतः विद्युत उत्पादन एवं सिंचाई के लिए जल निकालने में किया जा रहा है। 
👉 देवास एवं रतलाम में 169 मेगावाट के संयंत्र लगाए गए हैं।
( 2 ) बायोगैस प्लांट - राज्य में पहला बायोगैस प्लांट भोपाल के भद्रभद्रा पशुपालन विभाग में वर्ष 1984 में लगाया गया था। इसकी क्षमता 85 घन मीटर थी। यह 46 परिवारों की भोजन व्यवस्था करने में सक्षम था।
👉 वर्तमान में ऐसे 17 संयंत्र राज्य में स्थापित किए गए हैं।
( 3 ) हाई ड्रेम वाटर पंप - छोटी नदियों एवं नालों के आस-पास कृषि भूमि को बिजली एवं बिना ईंधन की सिंचाई जल उपलब्ध कराने के लिए हाई ड्रेम  वाटर पंप का प्रयोग किया जाता है। इसमें ढाल के अनुसार पानी की दबाव विधि का प्रयोग किया जाता है। राज्य में भोपाल , रायगढ़ , खंडवा एवं खरगोन आदि क्षेत्रों में हाई ड्रेम  वाटर पंप का प्रयोग किया जा रहा है।
( 4 ) सोलर फोटोवॉल्टिक संयंत्र - ये ऐसे सेल होते हैं , जो सूर्य की रोशनी को विद्युत ऊर्जा में बदलते हैं। इनका उपयोग रात के समय प्रकाश व्यवस्था करने में एवं विद्युत उपभोग के लिए होता है। राज्य में इनका उपयोग बेतूल , झाबुआ एवं होशंगाबाद के ग्रामीण क्षेत्रों में किया जा रहा है। ऐसे संयंत्रों से लगभग 300 वाट बिजली प्राप्त की जा सकती है। 
👉 रायगढ़ जिले के गणेशपुरा में सौर ऊर्जा पार्क बनाया गया है।
( 5 ) सोलर डिजिटल वाटर प्लांट - ऐसे संयंत्रों का प्रयोग शैक्षणिक संस्थानों में किया जाता है। इनमें वाष्पित आसुत जल एकत्रित करने हेतु सौर ऊर्जा का प्रयोग किया जाता है
( 6 ) सौर ऊर्जा - इन संयंत्रों का प्रयोग डेयरी उद्योग , चीनी मिल , कपड़ा मिल , होटल तथा हॉस्टल आदि में पानी को गर्म करने के लिए किया जाता है। राज्य सरकार इन संयंत्रों को बढ़ावा दे रही है। 
👉 राज्य का प्रथम सौर ऊर्जा ग्राम कस्तूरबा ( इंदौर ) है। 
👉 गणेशपुरा में सौर ऊर्जा पार्क बनाया गया है।

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( 7 ) बायोमास सयंत्र - कृषि अवशिष्टों से बायोमास आधारित तथा कैपटिव थर्मल इलेक्ट्रिकल तकनीकी पर आधारित संयंत्र स्थापित किए जाते हैं। वर्ष 2012 - 13 में 1.45 मेगावाट के संयंत्र स्थापित किए गए थे। 
👉 1 जनवरी 2015 तक कुल 44.34 मेगावाट के संयंत्र स्थापित किए जा चुके हैं। 
👉 बायोमास से बिजली उत्पन्न करने वाला पहला गांव कसई ( बैतूल ) है।
कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर नजर -
🌷मध्यप्रदेश में जल विद्युत का उत्पादन वर्ष 1905 में ग्वालियर में किया गया।
🌷ग्वालियर स्थान पर भूसी आधारित संयंत्र नहीं है।
🌷विश्व का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा संयंत्र इटारसी में लगाया गया है
🌷सौर ऊर्जा से विद्युत बनाने का कारखाना प्रदेश में सर्वप्रथम इंदौर में स्थापित किया गया।
🌷प्रदेश में 3 ऊर्जा उद्यान अनुसंधान एवं विकास केंद्र हैं।
🌷गुना एवं मंदसौर जिले में विंड मॉनिटरिंग कार्यक्रम से विद्युत का उत्पादन किया जा रहा है।
🌷बायोफ्यूल संयंत्र मंडला ( बांसगढ़ी ) में लगाया गया है।

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