प्राचीन भारत पर विदेशी आक्रमण History Gk

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प्राचीन भारत पर विदेशी आक्रमण History Gk

प्राचीन भारत पर दो विदेशी आक्रमण हुए - ( 1 ) ईरानी आक्रमण  ( 2 ) यूनानी आक्रमण 
प्राक-मौर्य युग में मगध सम्राटों का अधिकार क्षेत्र भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश तक विस्तृत नहीं हो पाया था। जिस समय मध्यभारत के राज्य मगध साम्राज्य की विस्तार वादी नीति का शिकार हो रहे थे, पश्चिमोत्तर प्रांतों में अराजकता एवं अव्यवस्थता का वातावरण व्याप्त था। यह क्षेत्र अनेक छोटे - बड़े राज्यों में विभक्त था जिसमें कम्बोज, गांधार एवं मद्र प्रमुख थे। इन क्षेत्रों में कोई ऐसी सार्वभौम शक्ति नहीं थी जो परस्पर संघर्षरत राज्यों को जीतकर एकछत्र शासन कर सकें। यह सपूर्ण प्रदेश उस समय विभाजित थे, ऐसी स्थिति में विदेशी आक्रांताओं का ध्यान भारत के इस भू-भाग की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक ही था। परिणाम स्वरुप यह प्रदेश दो विदेशी आक्रमणों ( ईरानी आक्रमण और यूनानी आक्रमण ) का शिकार हुआ। भारत में सर्वप्रथम विदेशी आक्रमण हखामनी वंश के राजाओं ने किया जो ईरानी थे। इस वंश का संस्थापक सायरस द्वितीय ( 558 ई.पू.  से 529 ई. पू. ) ने भारत पर आक्रमण का असफल प्रयास किया था |

प्राचीन भारत पर विदेशी आक्रमण History Gk

प्राचीन भारत पर ईरानी साम्राज्य के प्रमुख शासक और उनके आक्रमण

साइरस द्वितीय 558 ई.पू. से 529 ई.पू.

साइरस द्वितीय ने छठी शताब्दी ईस्व ईसा पूर्व के मध्य ईरान में हखामनी साम्राज्य की स्थापना की| साइरस द्वितीय एक महत्वकांक्षी शासक था अतः थोड़े ही समय में वह पश्चिमी एशिया का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक बन गया| साइरस ने सिंध के पश्चिम में भारत के सीमावर्ती क्षेत्र की विजय की प्लिमी के विवरण से ज्ञात होता है कि साइरस ने कपिशा नगर को ध्वस्त किया| सारइस की मृत्यु कैस्पियन क्षेत्र में डरबाइक नामक एक पूर्वी जनजाति के विरुद्ध लड़ते हुए हुई तथा उसका पुत्र कैंम्बिसीज द्वितीय उसके साम्राज्य का उत्तराधिकारी हुआ|वह ग्रह युद्धों में ही उलझा रहा और उसके समय में हखामनी साम्राज्य का भारत की ओर कोई विस्तार न हो सका |

दारा प्रथम या डेरियस प्रथम ( 522 ई.पू. से 486 ई.पू. )

भारत पर आक्रमण करने में प्रथम सफलता दारा  प्रथम को प्राप्त हुई | दारा के यूनानी सेनापति स्काईलेक्स ने सिंधु से भारतीय समुद्र में उतरकर अरब और मकरान तटों का पता लगाया | दारा प्रथम ने 516 ईसा पूर्व में सर्वप्रथम गांधार को जीतकर फारसी साम्राज्य में मिलाया था|

क्षयार्ष अथवा जरक्सीज ( लगभग 486 ई.पू. से 465 ई.पू. )

यह दारा का पुत्र था तथा इसने अपने पिता के साम्राज्य को सुरक्षित रखा, किंतु यह यूनानीयों द्वारा परास्त किया गया था| इसने अपनी फौज में भारतीयों को शामिल किया था| जरक्सीज की म्रत्यु के पश्चात उसके तात्कालिक उत्तराधिकारी क्रमशः अर्तजरक्सीज प्रथम एवं अर्तजरक्सीज द्वितीय हुए | साक्ष्यों से पता चलता है इन उत्तराधिकारियों द्वारा दारा प्रथम द्वारा निर्मित साम्राज्य को सुरक्षित रखा गया | पारसीकों का अंतिम सम्राट दारा तृतीय ( 360 ईसा पूर्व से 330 ईसा पूर्व ) था| दारा तृतीय को यूनानी सिकंदर ने अरबेला/गौगामेला के युद्ध में बुरी तरह परास्त किया| इस प्रकार  पारसीकों का विनाश हुआ|
ईरानी आक्रमण का भारत पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा -
समुद्री मार्ग की खोज से विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन मिला|
➤  पश्चिमोत्तर भारत में दाईं ओर से बाई ओर लिखी जाने वाली खरोष्ठी लिपि का प्रचार हुआ|
➤ अभिलेख उत्तीर्ण करने की प्रथा प्रारंभ हुई| 
➤ अशोक के शासनकाल की प्रस्तावना और उनमें प्रयुक्त शब्दों में भी ईरानी प्रभाव देखा जा सकता है|

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प्राचीन भारत पर यूनानी आक्रमण

सिकंदर

फिलिप द्वितीय जो सिकंदर का पिता था, 359 ईसा पूर्व में मकदूनिया का शासक बना। इसकी हत्या 329 ईसा पूर्व में कर दी गई। पिता की मृत्यु के पश्चात सिकंदर लगभग 20 वर्ष की अल्पायु में ही सिंहासन पर सिंहासनारूढ़ हुआ। सिकंदर  अरस्तु का शिष्य था। यूनानी शासक सिकंदर का भारत पर आक्रमण लगभग 326 ईसा पूर्व में हुआ। भारत अभियान के तहत सिकंदर 326 ईसा पूर्व में अफगानिस्तान के क्षेत्र को जीतने के बाद काबुल होता हुआ हिंदूकुश पर्वत ( खैबर दर्रा ) पार कर भारत आया। तक्षशिला के शासक आम्भी ने आत्मसमर्पण के साथ उसका स्वागत करते हुए उसे सहयोग का वचन दिया। सिकंदर के आक्रमण के समय अश्वक एक सीमांत गणराज्य था जिसकी राजधानी मस्सग थी। यूनानी लेखकों के अनुसार सिकंदर के विरुद्ध हुए युद्धों में बड़ी संख्या में पुरुष सैनिकों के मारे जाने के बाद वहां की स्त्रियों ने शस्त्र धारण किया था इसी विवरण से पता चलता है कि सिकंदर ने इस नगर की समस्त स्त्रियों को मौत के घाट उतार दिया था। सिकंदर को पंजाब ( झेलम तथा चिनाव का मध्यवर्ती क्षेत्र ) के शासक पोरस के साथ युद्ध करना पड़ा, जिसे 'हाईडेस्पीज या झेलम ( वितस्ता ) के युद्ध के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में पोरस की पराजय हुई। 19 महीने तक भारत में रहने के बाद सिकंदर की सेना ने व्यास नदी के पश्चिमी तट पर पहुंचकर उसको पार करने से मना कर दिया, सिकंदर विजित प्रदेशों को अपने सेनापति फिलिप को सौंपकर स्थल मार्ग द्वारा 325 ईसा पूर्व में भारत से लौट गया। सिकंदर की मृत्यु 323 ईसा पूर्व में बेबीलोन में 33 बर्ष की अवस्था में हो गई।
➤ सिकंदर की भारत विजय का महत्वपूर्ण कारण सिकंदर की सेना का शक्तिशाली होना और उसकी सेना में तेज-तर्रार घोङों की बहुलता का होना था। 
सिकंदर के आक्रमण का भारत पर प्रभाव -
➤ प्राचीन यूरोप को प्राचीन भारत के संपर्क में आने का अवसर मिला। 
➤ भारत और यूनान के बीच विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्यक्ष संपर्क की स्थापना। 
➤ पश्चिमोत्तर भारत के अनेक छोटे-छोटे राज्यों का एकीकरण। 
➤ सिकंदर के अभियान से अनेक स्थल और जलमार्ग खुले जो आज भी भारतीय व्यापार में अहम योगदान दे रहे हैं। 
➤ भारतियों ने यूनानियों से 'क्षत्रप प्रणाली' और 'मुद्रा निर्माण' की कला को ग्रहण किया। 
➤ भारत में गांधार शैली की कला का विकास यूनानी प्रभाव का ही परिणाम था। इसमें भारतीय - यूनानी कला का सम्मिश्रण दिखता है। 

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