मध्यप्रदेश प्रशासनिक परिदृश्य Mp gk in hindi

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स्वतंत्रता से पूर्व राज्य तीन श्रेणियों में विभक्त था। यह वर्ष 1956 में मध्य प्रदेश राज्य के नाम से अस्तित्व में आया। वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ के पृथक होने के बाद नया राज्य बना। 
🍎 1 नवंबर 1956 को नवगठित राज्य की राजधानी भोपाल बनाई गई इस समय राज्य में 23 जिले थे।
🍎 वर्तमान में राज्य में 55 जिले 10 संभाग हैं यहां 16 नगर निगम तथा 100 नगरपालिका हैं।
🍎 राज्य में 29 लोकसभा सीटें तथा राज्यसभा विधानसभा सीटें क्रमशः 11 और 230 हैं।
🍎 मध्य प्रदेश का गठन 10 दिसंबर 1953 में फजल अली की अध्यक्षता में गठित राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश पर 1 नवंबर 1956 को हुआ।
🍎 1 नवंबर 2000 को पूर्वी मध्य प्रदेश के 16 जिलों को पृथक करके छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ।
🍎 मध्य प्रदेश ने देश में सबसे पहले 1 अप्रैल 1999 को जिला सरकार की अवधारणा अपनाई। 
🍎 मध्य प्रदेश में सबसे बड़ा सिविल अधिकारी मुख्य सचिव होता है , तथा पुलिस का सबसे बड़ा अधिकारी पुलिस महानिदेशक होता है।
🍎 मध्यप्रदेश में जवाहरलाल नेहरू पुलिस अकैडमी सागर में स्थित है और पुलिस यातायात प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना भोपाल में की गई है। पुलिस वायरलेस प्रशिक्षण महाविद्यालय इंदौर में स्थित है , मध्यप्रदेश में पुलिस मोटर वर्कशॉप रीवा में स्थित है।

मध्यप्रदेश की प्रमुख संस्थाएं :

🍎 मध्यप्रदेश शासन ने लोक कल्याणकारी राज्य के लक्ष्य को प्राप्त करने तथा प्रशासनिक तंत्र के साथ सहयोग एवं निगरानी रखने हेतु कई संस्थाओं की स्थापना की है।
👉इनमें से प्रमुख संस्थायें निम्नलिखित हैं -

लोकायुक्त संगठन -

🍎 लोकायुक्त संगठन की स्थापना के लिए सर्वप्रथम एक विधेयक वर्ष 1975 में मध्यप्रदेश विधानसभा द्वारा पारित किया गया किंतु केंद्र सरकार द्वारा लोकायुक्त विधेयक में कतिपय संशोधनों के विचाराधीन होने के कारण इस पर राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिल सकी।
🍎 भारत सरकार के निर्णय को आधार बनाते हुए यह विधेयक वर्ष 1980 में संशोधित रूप से विधानसभा में पेश किया गया तथा अप्रैल 1981 में विधेयक के पारित होने तथा उस पर राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद उक्त बिधेयक अधिनियम के रूप में लागू हुआ।
🍎 लोकायुक्त एवं उप लोकायुक्त अधिनियम 1982 के अंतर्गत लोकायुक्त एवं उपलोकायुक्त विशिष्ट व्यक्तियों से संबंधित जांच कर सकेंगे।

राज्य सतर्कता आयोग -

🍎 भारत सरकार के द्वारा भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए सुझाव देने के लिए श्री के संथानम की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई। संथानम कमेटी द्वारा फरवरी 1963 में भारत सरकार को प्रतिवेदन पेश किया गया। भारत सरकार द्वारा संथानम कमेटी की सिफारिश के आधार पर केंद्र में सतर्कता आयोग की स्थापना का निर्णय लिया गया।
🍎 इसके तुरंत बाद मध्यप्रदेश सरकार द्वारा राज्य सतर्कता आयोग की स्थापना की दिशा में त्वरित कार्यवाही प्रारंभ की गई। इस प्रकार 1 मार्च 1964 को प्रदेश में विधिवत रूप से राज्य सतर्कता आयोग की स्थापना की गई।

मानवाधिकार आयोग -

मानव अधिकारों के सरक्षण के सफल क्रियान्वय के लिए जिस तरह केंद्र में मनवाधिकार आयोग का गठन किया गया है। उसी प्रकार मध्य प्रदेश में राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन सितंबर 1995 में किया गया था। इसका मुख्यालय भोपाल में हैं।

राज्य निर्वाचन आयोग -

🍎 73 वे संविधान संसोधन द्वारा प्रतिस्थापित अनुच्छेद 243 (ट) में पंचायत संस्थाओं तथा नगरीय निकायों के निर्वाचन के लिए एक राज्य निर्वाचन आयोग का प्रावधान किया गया है। इन स्थानीय संस्थाओं के लिए निर्वाचक नामावली तैयार करने का और निर्वाचनों के संचालन का अधीक्षण , निर्देशन और नियंत्रण राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगा।  मध्य प्रदेश में अगस्त 1994 में पारित अधिनियम के अंतर्गत निर्वाचन आयोग का गठन किया गया है।
🍎 राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है।

राज्य लोकसेवा आयोग -

🍎 1 नवंबर 1956 के राज्य पुनर्गठन तथा नवीन मध्य प्रदेश के निर्माण के बाद कानून 1956 की धारा 118 (3) के अनुसार मध्य प्रदेश के वर्तमान लोकसेवा आयोग का गठन दिनांक 27 अक्टूबर 1956 को किया गया। वस्तुतः इसका गठन वर्ष 1957 में हुआ और वर्ष 1958 में आयोग ने प्रथम परीक्षा आयोजित की और तब से यह क्रम निरंतर चला आ रहा है।
🍎 मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग इंदौर में स्थापित हुआ।
🍎 इसके प्रथम अध्यक्ष डी.बी. रंगे थे।

मध्यप्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था :

🍎 बलवंत राय मेहता समिति की पंचायती राज व्यवस्था की कमी को दूर करने के लिए केंद्रीय सरकार द्वारा वर्ष 1977 में अशोक मेहता की अध्यक्षता में एक समिति घटित की गई, जिसने केंद्र सरकार को अपनी सिफारिश वर्ष 1978 में प्रस्तुत कर दी।
🍎 वर्ष 1962 में प्रथम बार मध्यप्रदेश पंचायत अधिनियम लागू किया गया।
🍎 जिला पंचायत का चुनाव पहली बार वर्ष 1971 में हुआ।
🍎 वर्ष 1981 में राज्य सरकार द्वारा मध्यप्रदेश पंचायती राज अधिनियम के रूप में स्वीकृत हुआ , इसमें राज्य में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की बात कही गई।
🍎 पंचायती राज व्यवस्था को सर्वप्रथम संवैधानिक दर्जा देने की सिफारिश लक्ष्मीमल सिंघवी ने वर्ष 1986 में की थी।
🍎 लोकायुक्त विधेयक मध्यप्रदेश विधानसभा द्वारा वर्ष 1981 में पारित किया गया। 
🍎 मध्य प्रदेश के प्रथम लोकायुक्त पी. वी. दीक्षित थे।
🍎 संविधान के 73वें संशोधन के अनुसार 29 दिसंबर 1993 को राज्य विधानसभा में मध्य प्रदेश पंचायती राज अधिनियम विधेयक प्रस्तुत किया गया। जिसको विधानसभा द्वारा 30 दिसंबर 1993 को पारित किया गया।
🍎 इसे 25 जनवरी 1994 को लागू किया गया , तत्पश्चात पंचायतों व नगरी प्रशासन का चुनाव संपन्न कराने के लिए 19 जनवरी 1994 को मध्य प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग का गठन किया गया।
🍎 मध्य प्रदेश राज्य निर्वाचन के प्रथम आयुक्त एनवी लोहानी थे।
🍎 मध्यप्रदेश में सतर्कता आयोग की स्थापना 1964 में की गई थी।

त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था - 

🍎 ग्राम पंचायतों के सरपंच के मामले में निर्वाचन प्रक्रिया की जिम्मेदारी राज्य सरकार के विवेक पर निर्भर करेगी। जबकि जनपद एवं जिला पंचायतों के मामले में सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान प्रणाली के माध्यम से चुने हुए सदस्यों द्वारा किया जाएगा।

ग्राम पंचायत -

🍎 ग्राम पंचायत में हजार तक जनसंख्या वाले कम से कम 10 वार्ड तथा उसके ऊपर की जनसंख्या वाली ग्राम पंचायत के लिए अधिकतम 20 वार्ड जरूरी हैं। परंतु प्रत्येक वार्ड में जनसंख्या की समतुल्यता भी जरूरी है।  सर्वप्रथम ग्राम न्यायालय 12 दिसंबर 2001 को नीमच जिले के जावद जनपद की झांतला ग्राम पंचायत में आरंभ हुआ इसके अंतर्गत अनुसूचित जाति , जनजाति व अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण का लाभ दिया जाता है।
🍎 इस व्यवस्था में महिलाओं को 50% आरक्षण प्राप्त है

क्षेत्रीय जनपद पंचायत -

🍎 प्रत्येक 5000 मतदाता की जनसंख्या पर एक जनपद पंचायत होगी निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या 25 से अधिक नहीं होगी।
🍎 अनुसूचित जाति जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग व महिलाओं को आरक्षण की व्यवस्था होगी।

जिला पंचायत -

🍎 इस प्रणाली के अंतर्गत 50000 जनसंख्या के लिए एक निर्वाचन क्षेत्र विकसित किया जाएगा जिस जिले की जनसंख्या 500000 से कम है वहां कम से कम 10 निर्वाचन क्षेत्र तथा अधिक जनसंख्या की स्थिति में कुल निर्वाचन क्षेत्र 35 से अधिक नहीं होंगे।
🍎 आरक्षण प्रणाली की व्यवस्था की गई है। अध्यक्ष का चुनाव सदस्यों के द्वारा संपन्न कराया जाता है। 
मध्य प्रदेश में वर्तमान में 23006 ग्राम पंचायत , 313 जनपद पंचायतें कार्यरत हैं।

जिला पंचायत के कार्यकाल -

🍎 पंचायतों का कार्यकाल अपने प्रथम सम्मेलन से 5 वर्ष का होगा जब तक समय से पूर्व किसी विधिक प्रक्रिया द्वारा उसे बिघटित न कर दिया जाए। विघटित होने पर शेष कार्यकाल के लिए 6 माह के अंतर्गत चुनाव कराना प्रशासन के लिए अनिवार्य होगा।

ग्राम स्वराज -

🍎 यह देश का पहला ऐसा राज्य है जिसने 73वें संविधान संशोधन के लागू होने के साथ ही पंचायती राज अधिनियम को अपने यहां प्रभारी बनाया था। समस्त प्रदेश में ग्राम स्वराज्य व्यवस्था को 26 जनवरी 2001 से लागू किया गया है। इस व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य पंचायती राज्य में व्याप्त दोषों को दूर करना है।

मध्य प्रदेश राज्य में नगरी प्रशासन :

🍎 मध्यप्रदेश में नगर पालिका अधिनियम 1961 पारित किया गया। दिसंबर 1993 को विधानसभा में मध्य प्रदेश नगर पालिका विधेयक पारित किया गया, इस संविधान संशोधन के बाद राज्य में मध्य प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग का गठन किया गया। जिसने नवंबर - दिसंबर 1994 में इन निकायों के चुनाव संपन्न कराए वर्तमान समय में राज्य में उसी संशोधन अधिनियम के अनुरूप त्रिस्तरीय निकाय की व्यवस्था की है।
जो निम्न प्रकार है-

नगर निगम -

🍎 मध्यप्रदेश में वर्तमान समय में 16 नगर निगम क्रियाशील हैं। इसके प्रमुख को महापौर कहा जाता है। निकाय के अंतर्गत पहले उप महापौर का पद होता है , परंतु वर्ष 1999 में अध्यादेश जारी कर इस पद को समाप्त कर दिया गया।
🍎 सदस्य का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान प्रणाली द्वारा किया जाता है तथा प्रत्येक मतदान प्रणाली द्वारा ही महापौर का भी चुनाव करते हैं दिसंबर 1999 से फरवरी 2000 में संपन्न स्थानीय निकाय चुनाव में कमला जान किन्नर कटनी को महापौर चुना गया था।
🍎 वर्ष 2009 के चुनाव में सागर की महापौर कमला बुआ चुनी गई।

नगरपालिका परिषद -

🍎 ये परिषदें उन नगरीय क्षेत्रों में गठित की गई हैं , जिनकी जनसंख्या 20,000 से अधिक है। वर्तमान समय में इन परिषदों की संख्या 100 है। इनके पार्षद , अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के चुनाव में सरकारी नियमानुसार आरक्षण की भी व्यवस्था है।
🍎 इसमें महिलाओं के लिए 50% स्थानों का आरक्षण है।

नगर पंचायत -

🍎 नगरी क्षेत्र की यह पहली स्वायत्त संस्था है। राज्य में ऐसे सभी क्षेत्रों में यह संस्था गठित की गई है, जिनकी जनसंख्या 5 से 20 हजार के मध्य है। इनके पार्षदों का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान प्रणाली के माध्यम से होता है। चुने गए यह पार्षद ही अप्रत्यक्ष प्रणाली द्वारा अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का चुनाव करते हैं। 

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