1857 के विद्रोह को जन्म देने में डलहौजी की व्यापक नीति और वेलेजली की सहायक संधि की महत्वपूर्ण भूमिका रही|अजीमुल्ला ने बिठूर ( कानपुर ) में नाना साहिब के साथ मिलकर विद्रोह की योजना को अंतिम रूप देते हुए 31 मई 1857 की क्रांति का दिन निश्चित किया लेकिन यह क्रांति निर्धारित तिथि से पूर्व ही शुरू हो गई |इस विद्रोह में भारतीयों की हार हुई लेकिन इस विद्रोह ने अंग्रेजी शासन को जड़ से हिला दिया था|
भारतीय इतिहास के प्रमुख युद्ध Bhartiya itihas ke mahatvpurn yuddh
भारतीय इतिहास में ही नहीं वरन् विश्व इतिहास में भी युद्ध का प्रमुख स्थान रहा है|युद्धों से इतिहास के प्रत्येक पहलू बराबर प्रभावित हुए हैं| युद्ध का महत्व केवल सैनिक दृष्टि से ही नहीं है, वरन युद्ध के कारण पुराने राज्यों का पतन होता है तथा उनके स्थान पर नवीन राज्यों का उदय होता है |इसी तरह सामाजिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में भी नए तत्वों का समावेश होता है जिसके परिणाम स्वरूप धर्म, कला आदि भी प्रभावित होते हैं|
उपरोक्त अवधारणा भारतीय इतिहास में भी समान रूप से लागू होती है भारत में होने वाले युद्ध के राजनीतिक , सामाजिक , आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव महत्वपूर्ण रहे हैं|
जैसे - कलिंग युद्ध के पश्चात से अशोक में नव परिवर्तन हुआ| तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद से भारत में एक नवीन राज्य की स्थापना की प्रक्रिया शुरू हुई एवं वर्ष 1857 के युद्ध के परिणाम स्वरूप भारत के उपनिवेश ढांचे में परिवर्तन हुआ इसी तरह पानीपत के युद्ध ने मुगल साम्राज्य की नींव डाली जिससे इंडो-मुगल इस्लामिक संस्कृति का विकास हुआ|भारतीय इतिहास के प्रमुख युद्ध Bhartiya itihas ke mahatvpurn yuddh
कलिंग युद्ध 261 ई.पू. :
मौर्य सम्राट अशोक ने राज्य अभिषेक के पश्चात अपने वंशजों की दिग्विजय की नीति को जारी रखा एवं अशोक और राजा अनंतनाथम् के मध्य कलिंग का युद्ध इसी नीति का भाग था|
सम्राट अशोक ने अभिषेक के आठवें वर्ष में कलिंग के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया था जिसका विवरण अशोक के 13वें अभिलेख से प्राप्त हुआ |अभिलेख के अनुसार इस युद्ध का परिणाम कलिंग की हार थी जिसमें 150000 व्यक्ति बंदी बनाकर निर्वाचित किए गए एवं 100000 लोगों की हत्या की गई तथा इससे भी कई गुना अधिक लोग इस युद्ध में मारे गए|
अन्य तथ्य :
(1) विजय के पश्चात कलिंग का मगध साम्राज्य में विलय हो गया एवं वहां दो अधिनस्थ केंद्र स्थापित किए गए|(2) इसके तुरंत बाद ही मौर्य साम्राज्य की पूर्वी सीमा बंगाल की खाड़ी तक विस्तृत हो गई|
(3) कलिंग युद्ध के पश्चात अशोक का हृदय परिवर्तन हुआ|
तराइन का युद्ध - तराइन जोकि थानेश्वर के निकट स्थित है यहां पर दो युद्ध लड़े गए|
जिनका विवरण निम्नलिखित है -:
तराइन का प्रथम युद्ध ( 1191 ईस्वी ) -
पृथ्वीराज चौहान एवं मोहम्मद गौरी के मध्य तराइन युद्ध की रणभूमि रही है |पंजाब, मुल्तान एवं सिंध को विजित करने के पश्चात मोहम्मद गौरी की महत्वाकांक्षा दिल्ली और अजमेर पर आधिपत्य स्थापित करने की थी अर्थात गौरी की महत्वाकांक्षा और साम्राज्य विस्तार की नीति के कारण यह युद्ध अवश्यंभावी हो गया|
(2) पृथ्वीराज चौहान ने यह विस्तार नीति राज पिथौरा के लिए असुरक्षित माना और तावरहिंद को जीतने के लिए युद्ध प्रारंभ किया|
(3) कन्नौज के राठौर वंश के राजा जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान का समर्थन नहीं किया इसके बावजूद भी मोहम्मद गोरी पराजित हुआ यह उसकी दूसरी पराजय थी|
युद्ध के 13 माह पश्चात मलिक जियाउद्दीन में पृथ्वीराज चौहान तृतीय के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया एवं तावरहिंद पर चौहान वंश का आधिपत्य हो गया|
अन्य तथ्य :
(1) 1189 ईस्वी में गोरी ने तावरहिंद ( भठिंडा ) में दुर्ग पर अधिकार कर लिया एवं मलिक जियाउद्दीन तुर्की को वहां नियुक्त किया|(2) पृथ्वीराज चौहान ने यह विस्तार नीति राज पिथौरा के लिए असुरक्षित माना और तावरहिंद को जीतने के लिए युद्ध प्रारंभ किया|
(3) कन्नौज के राठौर वंश के राजा जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान का समर्थन नहीं किया इसके बावजूद भी मोहम्मद गोरी पराजित हुआ यह उसकी दूसरी पराजय थी|
युद्ध के 13 माह पश्चात मलिक जियाउद्दीन में पृथ्वीराज चौहान तृतीय के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया एवं तावरहिंद पर चौहान वंश का आधिपत्य हो गया|
तराइन का द्वितीय युद्ध ( 1192 ईस्वी ) -
तराइन के प्रथम युद्ध में पराजित होने के बाद मोहम्मद गौरी गजनी लौट गया एवं 1 वर्ष पश्चात वह विशाल सेना के साथ भारत की ओर कूच कर गया|
(2) पृथ्वीराज चौहान की सेना की कमान गोविंद राय , खांडे राय तथा बादमस रावल के हाथों में थी|
(3) युद्ध से पूर्व गोरी ने पृथ्वीराज को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए संदेश भेजा किंतु उसने कटु उत्तर दिया तत्पश्चात युद्ध प्रारंभ हुआ|
(4) इस युद्ध में मोहम्मद गौरी की विजय हुई पृथ्वीराज चौहान की ओर से गोविंद राय एवं खांडे राय नामक सेनापति मारे गए|
(5) तराइन का द्वितीय युद्ध प्रथम युद्ध से ज्यादा प्रभावकारी साबित हुआ तराइन के द्वितीय युद्ध के पश्चात भारत में नवीन शासन की स्थापना की प्रक्रिया शुरू हुई जो बाद में दिल्ली सल्तनत के रूप में सामने आई यहीं से इंडो-इस्लामी चरण की शुरुआत हुई|
अन्य तथ्य :
(1) 1192 ईस्वी में गौरी तराइन पहुंचा और उसी स्थान पर शिविर लगाया जहां 1 वर्ष पूर्व उसकी हार हुई थी |(2) पृथ्वीराज चौहान की सेना की कमान गोविंद राय , खांडे राय तथा बादमस रावल के हाथों में थी|
(3) युद्ध से पूर्व गोरी ने पृथ्वीराज को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए संदेश भेजा किंतु उसने कटु उत्तर दिया तत्पश्चात युद्ध प्रारंभ हुआ|
(4) इस युद्ध में मोहम्मद गौरी की विजय हुई पृथ्वीराज चौहान की ओर से गोविंद राय एवं खांडे राय नामक सेनापति मारे गए|
(5) तराइन का द्वितीय युद्ध प्रथम युद्ध से ज्यादा प्रभावकारी साबित हुआ तराइन के द्वितीय युद्ध के पश्चात भारत में नवीन शासन की स्थापना की प्रक्रिया शुरू हुई जो बाद में दिल्ली सल्तनत के रूप में सामने आई यहीं से इंडो-इस्लामी चरण की शुरुआत हुई|
भारतीय इतिहास के प्रमुख युद्ध Bhartiya itihas ke mahatvpurn yuddh
पानीपत का युद्ध - पानीपत के मैदान में कुल 3 युद्ध हुए हैं , इनमें से प्रथम तथा द्वितीय युद्ध का संबंध प्रत्यक्ष रूप से मुगलों से था तथा तृतीय युद्ध मराठों से संबंधित था|
पानीपत के 3 युद्ध का विवरण निम्नानुसार है - :
1. पानीपत का प्रथम युद्ध -
पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अप्रैल 1526 को बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच हुआ और इस युद्ध में बाबर की विजय हुई| बाबर ने पानीपत के युद्ध में पहली बार तोप और बारूद का व्यापक प्रयोग किया|
इब्राहिम लोदी मध्यकाल का प्रथम शासक था जो इस युद्ध में मारा गया| 27 अप्रैल 1526 को दिल्ली की कुतुआ में बाबर का नाम पढ़ा गया तथा भारत में मुगल वंश की स्थापना हुई बाबर को उदारता तथा दानशीलता के कारण "कलंदर" भी कहा जाता है|
इब्राहिम लोदी मध्यकाल का प्रथम शासक था जो इस युद्ध में मारा गया| 27 अप्रैल 1526 को दिल्ली की कुतुआ में बाबर का नाम पढ़ा गया तथा भारत में मुगल वंश की स्थापना हुई बाबर को उदारता तथा दानशीलता के कारण "कलंदर" भी कहा जाता है|
2. पानीपत का द्वितीय युद्ध -
पानीपत का द्वितीय युद्ध 5 नवंबर 1556 को अकबर तथा हेमू के बीच हुआ अकबर की ओर से मुगल सेना का नेतृत्व बैरम खान ने किया|
इस युद्ध में हेमू की पराजय हुई तथा पुनः मुगल वंश का प्रभुत्व स्थापित हुआ|
हेमू ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी ऐसा करने वाला यह 14वां शासक था|
इस युद्ध में हेमू की पराजय हुई तथा पुनः मुगल वंश का प्रभुत्व स्थापित हुआ|
हेमू ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी ऐसा करने वाला यह 14वां शासक था|
3. पानीपत का तृतीय युद्ध -
पानीपत का तृतीय युद्ध जनवरी 1761 को मराठों तथा अफगान शासक अहमदशाह अब्दाली के बीच हुआ इस युद्ध में मराठा पराजित हुए |पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों को किसी भारतीय शक्ति का सहयोग नहीं मिला मराठों की ओर से सेनापति विश्वासराव थे, परंतु वास्तव में सेना का नेतृत्व सदाशिवराव भाऊ ने किया था| इस युद्ध के समय मराठा पेशवा बालाजी बाजीराव थे|
खानवा का युद्ध -
खानवा का युद्ध 16 मार्च 1527 को आगरा से 40 मील दूर खानवा नामक स्थान पर हुआ था |यह युद्ध बाबर और राणा सांगा के बीच हुआ था| इस युद्ध में राणा सांगा की हार हुई|
खानवा के युद्ध के दौरान बाबर ने जिहाद की घोषणा की तथा युद्ध में विजय के बाद गाजी की उपाधि धारण की|
प्रभाव की दृष्टि से खानवा का युद्ध पानीपत के युद्ध से ज्यादा प्रभावकारी था|
पानीपत के युद्ध के बाद मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई जबकि खानवा युद्ध ने मुगल साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान किया बाबर की शक्ति का केंद्र काबुल के स्थान पर दिल्ली हो गया|
खानवा के युद्ध के दौरान बाबर ने जिहाद की घोषणा की तथा युद्ध में विजय के बाद गाजी की उपाधि धारण की|
प्रभाव की दृष्टि से खानवा का युद्ध पानीपत के युद्ध से ज्यादा प्रभावकारी था|
पानीपत के युद्ध के बाद मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई जबकि खानवा युद्ध ने मुगल साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान किया बाबर की शक्ति का केंद्र काबुल के स्थान पर दिल्ली हो गया|
हल्दीघाटी का युद्ध -
1568 ई. में उदय सिंह को पराजित कर अकबर ने यद्यपि मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया था परंतु अभी भी राज्य का बड़ा भू-भाग उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर था| वर्ष 1576 में इसी मंशा के साथ अकबर ने अपनी शाही सेना अजमेर में स्थानांतरित की|
दूसरी ओर मेवाड़ के राजा राणा प्रताप सिंह ने कुंभलगढ़ को अपनी राजधानी बनाया और अकबर की शाही सेना का मुकाबला किया|
18 June 1576 में गोगुण्डा के निकट हल्दीघाटी के मैदान में दोनों सेनाओं के मध्य युद्ध हुआ यह युद्ध अनिर्णायक रहा| मुगल सेना ने गोगुंडा के दुर्ग और उसके आसपास के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया परन्तु मेवाड़ के मध्य क्षेत्रों पर राणा प्रताप का अधिकार बना रहा|
जहांगीर के समय मुगलों की मेवाड़ से संधि हो गई तथा बाद में औरंगजेब तक मुगल मेवाड़ संबंध शांतिपूर्ण बने रहे|
दूसरी ओर मेवाड़ के राजा राणा प्रताप सिंह ने कुंभलगढ़ को अपनी राजधानी बनाया और अकबर की शाही सेना का मुकाबला किया|
18 June 1576 में गोगुण्डा के निकट हल्दीघाटी के मैदान में दोनों सेनाओं के मध्य युद्ध हुआ यह युद्ध अनिर्णायक रहा| मुगल सेना ने गोगुंडा के दुर्ग और उसके आसपास के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया परन्तु मेवाड़ के मध्य क्षेत्रों पर राणा प्रताप का अधिकार बना रहा|
जहांगीर के समय मुगलों की मेवाड़ से संधि हो गई तथा बाद में औरंगजेब तक मुगल मेवाड़ संबंध शांतिपूर्ण बने रहे|
प्लासी का युद्ध ( 23 जून 1757 ) -
अंग्रेजों ने अपनी प्रारंभिक औपनिवेशिक दौर में व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अनेक युद्ध किए जिनमें सबसे प्रमुख प्लासी का युद्ध था|
मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर नदिया जिले के गंगा नदी के किनारे प्लासी नामक स्थान पर प्लासी का युद्ध हुआ|
अंग्रेजों की सेना का नेतृत्व रॉबर्ट क्लाइव एवं बंगाल की सेना का नेतृत्व नवाब सिराजुद्दौला कर रहे थे , सिराजुद्दौला को इस युद्ध में पराजय का सामना करना पड़ा|
अंग्रेजों ने इस युद्ध को षड्यंत्र से जीता इस युद्ध में नवाब के प्रधान सेनापति मीर जाफर, साहूकार जगत सेठ , राय दुर्लभ तथा अमीरचंद आदि अंग्रेजों में मिल गए परिणाम स्वरूप मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना दिया गया|
मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर नदिया जिले के गंगा नदी के किनारे प्लासी नामक स्थान पर प्लासी का युद्ध हुआ|
अंग्रेजों की सेना का नेतृत्व रॉबर्ट क्लाइव एवं बंगाल की सेना का नेतृत्व नवाब सिराजुद्दौला कर रहे थे , सिराजुद्दौला को इस युद्ध में पराजय का सामना करना पड़ा|
अंग्रेजों ने इस युद्ध को षड्यंत्र से जीता इस युद्ध में नवाब के प्रधान सेनापति मीर जाफर, साहूकार जगत सेठ , राय दुर्लभ तथा अमीरचंद आदि अंग्रेजों में मिल गए परिणाम स्वरूप मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना दिया गया|
1857 का विद्रोह ( 10 मई 1857 ) -
ईस्ट इंडिया कंपनी की भारत में दो प्रमुख कार्य थे - साम्राज्य बढ़ाना और व्यापारिक शोषण|
अंग्रेजों की धन लोलुपता की कोई सीमा नहीं थी इस शोषण नीति का भारतीयों द्वारा रोष प्रकट किया जाता रहा जिसकी परिणति वर्ष 1857 के विद्रोह के रूप में हुई| भारतीय सैनिकों के चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग करने को स्वीकार न करने पर भारतीय सैनिकों पर अनुशासनहीनता का अपराध लगाकर उन्हें दंड दिया गया|
अंग्रेजों की धन लोलुपता की कोई सीमा नहीं थी इस शोषण नीति का भारतीयों द्वारा रोष प्रकट किया जाता रहा जिसकी परिणति वर्ष 1857 के विद्रोह के रूप में हुई| भारतीय सैनिकों के चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग करने को स्वीकार न करने पर भारतीय सैनिकों पर अनुशासनहीनता का अपराध लगाकर उन्हें दंड दिया गया|
Hard Work, sincerity, honesty, consistency, compassion and Determination are the Key to Success
Just do it. God bless You ...............#RAMKESHeducation